"ईमानदारी का हिसाब" हिंदी कहानी | Real Life Inspirational Story in Hindi
Real Life Inspirational Short Story in Hindi : कहानियां दर्पण होती है, हमारी जिंदगी का. कभी-कभी कुछ Stories हमें कुछ ऐसा सिखा जाती है, जो शायद पूरी जिंदगी के अनुभवों में हम नहीं सीख पाते. इसीलिए हम आपके लिए ऐसी ही कुछ चुनिंदा Hindi Stories लेकर आते रहते हैं. इन हिंदी कहानियां से आप Inspire होने के साथ कुछ अच्छा सीखते हैं. आज की हमारी Kahani एक "Real Life Inspirational Short Story" है. यह कहानी Students के लिए है. मैं आशा करता हूं, आपको इस कहानी से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. इस कहानी का शीर्षक है "ईमानदारी का हिसाब"।
यह वो किस्सा है, जो अब मेरी जिंदगी का हिस्सा है. मैं थोड़ा जिद्दी किस्म का इंसान हूं और इसी जिद की वजह से बचपन में मुझे बहुत मार पड़ी है. लगभग मुझसे घर के सारे लोग परेशान रहते थे. मां तो इस जिद की वजह से, हर दूसरे दिन झाड़ू से मारती या फिर बात करना बंद कर देती थी. इसीलिए मैं भी थोड़ा चिढ़ा-चिढ़ा सा रहता था.
लेकिन इन सब रंजिशों के बीच एक शख्स चुपचाप मेरे साथ खड़ा रहता था, वह थे-- "मेरे पापा". हाथ उठाना तो दूर की बात है. मुझे तो यह भी याद नही कि आखरी बार उन्होंने मुझ से ऊंची आवाज में बात कब की थी. हुबहू मेरी तरह दिखते हैं वो. क्योंकि पापा हमेशा कहते हैं कि-- "जितना मैं उनसे सीखता हूं, उतना वह भी मुझसे सीखते हैं. बाप-बेटे के रिश्ते से पहले हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता है.
जैसे दोस्त एक दूसरे के बिना कुछ कहे, आंखों ही आंखों में एक दूसरे का हाल समझ लेते हैं. बिल्कुल वैसा ही हमारा रिश्ता भी है. पापा मुझसे कभी किसी के लिए मना नहीं करते. जब मैं उनसे कहीं जाने को कहता या फिर कुछ करने को पूछता हूं, तो वह सिर्फ एक बात बोलते हैं-- "कि बेटा अगर तुम्हें यह गलत नहीं लग रहा. 'तो करो'. यह शब्द सुनने के बाद मुझे ना जाने कैसे खुद-ब-खुद सही और गलत का अंतर समझ आ जाता है.
यह बात उस समय की है, जब मैं क्लास 5th में पढ़ता था. ठीक 1 तारीख को पापा की तनख्वाह आती और महीने के पहले रविवार की शाम पापा और मैं महीने भर का राशन लेने के लिए एक साथ जाते थे. मुझे आज भी याद है, एक पुरानी सी साइकिल के हैंडल पर दो थैले बांधकर महीने भर की खुशियां लेकर आते थे.
एक बार उस रोज हम राशन लेकर घर वापस आ रहे थे. तो पापा की नजर थैले के ऊपर रखी हुई 1 विमबार की बड़ी टिकिया पर गई. पापा ने मुझे रुकने के लिए कहा और हिसाब वाला खाता मांगा. उन्होंने कुछ देर हिसाब वाले खाते में जांच पड़ताल की और बोले-- "यार!! इसने तो छोटी टिकिया के दाम जोड़कर बड़ी टिकिया दे दी. चलो कोई बात नहीं तुम यहां कुछ देर इंतजार करो, मैं इसे अभी बदलवाकर वापस आता हूं".
इतने पर मैं फट से बोल पड़ा-- "पापा!! यह क्या कर रहे हो? अब रहने भी दो. आप कहां इतनी दूर फिर से वापस जाओगे. तो पापा एक पल को रुके, जरा सा मुस्कुराए और उस टिकिया को हाथ में लेकर बोले-- "बेटा!! यह मुझे गलत लग रहा है, तो मैं ये नहीं करूंगा". पापा वापस दुकानदार के पास चले गए. मैं कुछ देर वहां उनका इंतजार करता रहा.
कुछ 5-10 मिनट बाद वह बड़ी टिकिया को बदलवाकर एक छोटी सी टिकिया लेकर वापस आए. और हम घर की ओर चलने लगे. रास्ते में पापा ने एक हाथ से साइकिल को संभाला और दूसरा हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए बोले-- "बेटा!! ईमानदारी किसी और से नहीं की जाती, इमानदारी खुद से होती है. ईमानदारी हर उस चीज में होनी चाहिए, जिसे तुम दिल से करते हो".
तब जाकर यह समझ में आया कि ईमानदारी सिर्फ पैसों की मोहताज नहीं होती. उस दिन से बस्ता उठाये, हर दिन इस उम्मीद में घर से निकलता हूं. कि अगर किसी दिन जिद छोड़ देता हूं या जिंदगी में किसी मोड़ पर पहुंच कर थक कर हार कर बैठ जाता हूं, तो इस बात की राहत हमेशा रहेगी. कि बड़ी ईमानदारी से सपने देखे थे और इतनी ईमानदारी से उन्हें पूरा करने की कोशिश भी की थी.
क्योंकि यह जो इमानदारी है ना, पापा की उस वापस लाई हुई छोटी टिकिया की तरह है, जो गलत नहीं है. सपनों के लिए जोश, जज्बा, जुनून, हौसला, हिम्मत यह सब बहुत जरूरी है. जब तक आप इन सब को पूरी ईमानदारी से नहीं निभाते तब तक कुछ मुकम्मल नहीं होने वाला. इसीलिए ईमानदार बनो सब से नहीं, अपने आप से और खुद से.....!!
बस इतनी सी थी ये कहानी......!
अमनदीप सिंह
Note : आपको "Real Life Inspirational Short Story in Hindi For Students" कैसी लगी हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं अगर आपको यह Hindi Motivational Story पसंद आई हो तो अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करें. यदि आप हमसे बात करना चाहते हैं, तो हमारे Contact Us पेज और Facebook पेज पर हम से कांटेक्ट कर सकते हैं. धन्यवाद
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Real Life Inspirational Short Story in Hindi For Students
लेकिन इन सब रंजिशों के बीच एक शख्स चुपचाप मेरे साथ खड़ा रहता था, वह थे-- "मेरे पापा". हाथ उठाना तो दूर की बात है. मुझे तो यह भी याद नही कि आखरी बार उन्होंने मुझ से ऊंची आवाज में बात कब की थी. हुबहू मेरी तरह दिखते हैं वो. क्योंकि पापा हमेशा कहते हैं कि-- "जितना मैं उनसे सीखता हूं, उतना वह भी मुझसे सीखते हैं. बाप-बेटे के रिश्ते से पहले हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता है.
जैसे दोस्त एक दूसरे के बिना कुछ कहे, आंखों ही आंखों में एक दूसरे का हाल समझ लेते हैं. बिल्कुल वैसा ही हमारा रिश्ता भी है. पापा मुझसे कभी किसी के लिए मना नहीं करते. जब मैं उनसे कहीं जाने को कहता या फिर कुछ करने को पूछता हूं, तो वह सिर्फ एक बात बोलते हैं-- "कि बेटा अगर तुम्हें यह गलत नहीं लग रहा. 'तो करो'. यह शब्द सुनने के बाद मुझे ना जाने कैसे खुद-ब-खुद सही और गलत का अंतर समझ आ जाता है.
यह बात उस समय की है, जब मैं क्लास 5th में पढ़ता था. ठीक 1 तारीख को पापा की तनख्वाह आती और महीने के पहले रविवार की शाम पापा और मैं महीने भर का राशन लेने के लिए एक साथ जाते थे. मुझे आज भी याद है, एक पुरानी सी साइकिल के हैंडल पर दो थैले बांधकर महीने भर की खुशियां लेकर आते थे.
एक बार उस रोज हम राशन लेकर घर वापस आ रहे थे. तो पापा की नजर थैले के ऊपर रखी हुई 1 विमबार की बड़ी टिकिया पर गई. पापा ने मुझे रुकने के लिए कहा और हिसाब वाला खाता मांगा. उन्होंने कुछ देर हिसाब वाले खाते में जांच पड़ताल की और बोले-- "यार!! इसने तो छोटी टिकिया के दाम जोड़कर बड़ी टिकिया दे दी. चलो कोई बात नहीं तुम यहां कुछ देर इंतजार करो, मैं इसे अभी बदलवाकर वापस आता हूं".
इतने पर मैं फट से बोल पड़ा-- "पापा!! यह क्या कर रहे हो? अब रहने भी दो. आप कहां इतनी दूर फिर से वापस जाओगे. तो पापा एक पल को रुके, जरा सा मुस्कुराए और उस टिकिया को हाथ में लेकर बोले-- "बेटा!! यह मुझे गलत लग रहा है, तो मैं ये नहीं करूंगा". पापा वापस दुकानदार के पास चले गए. मैं कुछ देर वहां उनका इंतजार करता रहा.
कुछ 5-10 मिनट बाद वह बड़ी टिकिया को बदलवाकर एक छोटी सी टिकिया लेकर वापस आए. और हम घर की ओर चलने लगे. रास्ते में पापा ने एक हाथ से साइकिल को संभाला और दूसरा हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए बोले-- "बेटा!! ईमानदारी किसी और से नहीं की जाती, इमानदारी खुद से होती है. ईमानदारी हर उस चीज में होनी चाहिए, जिसे तुम दिल से करते हो".
तब जाकर यह समझ में आया कि ईमानदारी सिर्फ पैसों की मोहताज नहीं होती. उस दिन से बस्ता उठाये, हर दिन इस उम्मीद में घर से निकलता हूं. कि अगर किसी दिन जिद छोड़ देता हूं या जिंदगी में किसी मोड़ पर पहुंच कर थक कर हार कर बैठ जाता हूं, तो इस बात की राहत हमेशा रहेगी. कि बड़ी ईमानदारी से सपने देखे थे और इतनी ईमानदारी से उन्हें पूरा करने की कोशिश भी की थी.
क्योंकि यह जो इमानदारी है ना, पापा की उस वापस लाई हुई छोटी टिकिया की तरह है, जो गलत नहीं है. सपनों के लिए जोश, जज्बा, जुनून, हौसला, हिम्मत यह सब बहुत जरूरी है. जब तक आप इन सब को पूरी ईमानदारी से नहीं निभाते तब तक कुछ मुकम्मल नहीं होने वाला. इसीलिए ईमानदार बनो सब से नहीं, अपने आप से और खुद से.....!!
बस इतनी सी थी ये कहानी......!
अमनदीप सिंह
Note : आपको "Real Life Inspirational Short Story in Hindi For Students" कैसी लगी हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं अगर आपको यह Hindi Motivational Story पसंद आई हो तो अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करें. यदि आप हमसे बात करना चाहते हैं, तो हमारे Contact Us पेज और Facebook पेज पर हम से कांटेक्ट कर सकते हैं. धन्यवाद
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