नरवर का किला और लोड़ी माता का इतिहास | Narwar Fort and Lodi Mata History in Hindi
Narwar Ka Kila or Lodi Mata Ka Itihas / History / Kahani : हेलो दोस्तो! आज के इस लेख में हम बात करेंगे "नरवर के किले और लोड़ी माता के इतिहास" के बारे में. अगर आपने गूगल पर 'नरवर के किले या लोड़ी माता' से संबंधित कुछ सर्च करके आप इस लेख तक पहुंचे हैं. तो जाहिर सी बात है कि आप कुछ ना कुछ पहले से नरवर या लोड़ी माता में से दोनों विषयों से किसी न किसी विषय पर जानकारी रखते हैं. हमारी इस लेख का उद्देश्य "Narwar Ke Kile और Lodi Mata की ऐतिहासिक कहानी" को आप तक पहुंचाना है, जिसे आप नीचे पढ़ सकते हैं.
नरवर 19 से 20वी. शताब्दी में नलपुर (निषदपुर) नाम से जाना जाता था. नरवर का किला समुद्र-तल से 1600 और भू-तल से 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस किले का क्षेत्रफल लगभग 7 किलोमीटर में फैला हुआ है. इस किले के निचले हिस्से में Lodi Mata का मंदिर है.
लोड़ी माता की मान्यता उत्तर भारत और मध्य भारत में काफी अधिक है. इस किले के खंडहर होने का एकमात्र कारण पुरातत्व विभाग का सही रख रखाव नहीं है. अब इस किले को टूरिस्ट, एडवेंचर स्पॉट के रूप में घूमने फिरने के लिए इस्तेमाल करते हैं.
नरवर के किले के संदर्भ में बताया जाता है कि यहां राजा नल का राज का चलता था. लेकिन राजा नल जुए के खेल में अपनी पूरी संपत्ति को हार गए थे. बाद में यहां राजा नल के पुत्र मारु ने राज किया था. मारु-ढोला प्रेम कहानी पूरे राजस्थान की सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक है.
नरवर के किले से नीचले हिस्से में लोड़ी माता का मंदिर बना हुआ है. इस मंदिर का इतिहास भी राजा नल के शासनकाल से जुड़ा हुआ है. नरवर की स्थानीय कथाओं के अनुसार लोड़ी माता नट समुदाय से ताल्लुक रखती थी. बताया जाता है कि लोड़ी माता को तांत्रिक विद्या में महारत हासिल थी. वह धागे के ऊपर चलने का असंभव-सा कारनामा आसानी से कर लिया करती थी.
जब लोड़ी माता ने अपना यह कारनामा राजा नल के दरबार में दिखाया तो राजा नल के मंत्री ने एक साजिश के तहत वह धागा काट दिया. और जिसके कारण लोहड़ी माता की अकाल मृत्यु हो गई. तभी से लोड़ी माता के श्राप से राजा नल का किला जिसे नरवर का किला भी कहा जाता है, खंडहर में तब्दील हो गया. वर्तमान समय में यहां लोडी माता के श्रद्धालुओं ने मंदिर बना लिया है. यहां पूजा करने के लिए साल भर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
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नरवर के किले का इतिहास - Narwar Fort History in Hindi
नरवर के किले और लोड़ी माता का इतिहास ग्वालियर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिला शिवपुरी के नरवर सहर से जुड़ा हुआ है. 'नरवर का इतिहास' 200 वर्ष पुराना है. बताया जाता है कि 19वी सदी में नरवर राजा नल की राजधानी हुआ करती थी.
नरवर 19 से 20वी. शताब्दी में नलपुर (निषदपुर) नाम से जाना जाता था. नरवर का किला समुद्र-तल से 1600 और भू-तल से 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस किले का क्षेत्रफल लगभग 7 किलोमीटर में फैला हुआ है. इस किले के निचले हिस्से में Lodi Mata का मंदिर है.
लोड़ी माता की मान्यता उत्तर भारत और मध्य भारत में काफी अधिक है. इस किले के खंडहर होने का एकमात्र कारण पुरातत्व विभाग का सही रख रखाव नहीं है. अब इस किले को टूरिस्ट, एडवेंचर स्पॉट के रूप में घूमने फिरने के लिए इस्तेमाल करते हैं.
नरवर के किले के संदर्भ में बताया जाता है कि यहां राजा नल का राज का चलता था. लेकिन राजा नल जुए के खेल में अपनी पूरी संपत्ति को हार गए थे. बाद में यहां राजा नल के पुत्र मारु ने राज किया था. मारु-ढोला प्रेम कहानी पूरे राजस्थान की सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक है.
लोहड़ी माता की ऐतिहासिक कहानी (Lodi Mata History in Hindi)
जब लोड़ी माता ने अपना यह कारनामा राजा नल के दरबार में दिखाया तो राजा नल के मंत्री ने एक साजिश के तहत वह धागा काट दिया. और जिसके कारण लोहड़ी माता की अकाल मृत्यु हो गई. तभी से लोड़ी माता के श्राप से राजा नल का किला जिसे नरवर का किला भी कहा जाता है, खंडहर में तब्दील हो गया. वर्तमान समय में यहां लोडी माता के श्रद्धालुओं ने मंदिर बना लिया है. यहां पूजा करने के लिए साल भर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
दोस्तों! "Narwar Fort Or Lodi Mata" से संबंधित आपकी क्या सुझाव है, नीचे कमेंट के माध्यम से अपने सुझाव एवं सवाल हमारे साथ शेयर कर सकते हैं. अगर आपको यह लेख पसंद आया है तो सोशल मीडिया पर शेयर करें. यदि आप हमसे संपर्क करना चाहते हैं. तो हमारे Contact Us पेज और Facebook पेज पर हम से कांटेक्ट कर सकते हैं. धन्यवाद😊
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