अरुणिमा सिन्हा के जुनून की कहानी | Arunima Sinha Biography in Hindi
Arunima Sinha Biography in Hindi : अरुणिमा सिन्हा पेशेवर Mountain Climber (पर्वतारोही) है। लेकिन उनमें और बाकी पर्वतारोहियों में खास अंतर यह है, कि Arunima एक पैर से विकलांग है। लेकिन फिर भी एवरेस्ट को फतह कर चुकी हैं। 'Arunima Sinha' एक ऐसा नाम जिसे हम Born Again on the Mountain कहे तो कुछ गलत नही होगा। आज आलम यह है कि हर पर्वतारोही Arunima को अपना आइडल मानता हैं।
"Arunima Sinha" एक ऐसे व्यक्तित्व की धनी है। जिन्होंने वह कर दिखाया जो अच्छे-अच्छे Everest Climbers के लिए बिल्कुल स्वभाविक नहीं था। उन्होंने विकलांग होने के बावजूद दुनिया की सबसे ऊंची चोटी Mount Everest को फतेह कर। भारत का नाम दुनिया के इतिहास में सुुुनहरे पन्ने में जोड़ दिया। Arunima की कहानी हमारे आने वाली पीढ़ी को सदियों तक Inspire करती रहेगी।
साथ ही साथ अरुणिमा सिन्हा उन लोगों की आइडल बन गयी। जो अपनी जिंदगी में कुछ अलग और अच्छा करना चाहते हैं पर हालातों के चलते हार मान जाते हैं। अरुणिमा सिन्हा दुनिया के लिए एक ऐसी मिसाल है जिन्होंने पूरी दुनिया को बताया कि इंसान शरीर से नहीं दिमाग से विकलांग होता है। तो चलिए दोस्तों जानते है, अरुणिमा सिन्हा के बारे में विस्तार से।
अरुणिमा सिन्हा की कहानी - Arunima Sinha Biography in Hindi
पूरा नाम - अरुणिमा सिन्हा.
जन्म - 1988 उत्तर प्रदेश (भारत).
नागरिकता - भारतीय.
व्यवसाय - पूर्व वालीबाल खिलाडी और पर्वतारोही.
कार्यक्षेत्र - एवरेस्ट फतह करने वाली पहली विकलांग.
उपलब्धियां - Padma Shri in sports.
Arunima Sinha प्रारंभिक जीवन
Arunima Sinha का जन्म सन 1988 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ अरुणिमा की रुचि बचपन से ही स्पोर्ट्स में रही वह एक नेशनल वॉलीबॉल प्लेयर भी थी। उनकी लाइफ में सब कुछ समान्य चल रहा था। तभी उनके साथ कुछ ऐसा घटित हुआ जिसके चलते उनकी जिंदगी का इतिहास ही बदल गया। क्या थी वह घटना जिसके चलते उन्होंने नए कीर्तिमान रच दिये आइए जानते हैं।Arunima Sinha की कहानी
यह बात है, उस समय की जब Arunima Sinha दिल्ली से लौटते वक्त ट्रेन में सफर कर रही थी। और उस सफर के दौरान उनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिसका दर्द आजतक उनकी बातों से साफ झलकता है। ट्रेन के सफर के दौरान कुछ गुंडों ने अरुणिमा के साथ लूटपाट की। गुंडो ने वारदात के दौरान उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया। जिसके चलते वह बुरी तरह से जख्मी हो गई और उनका एक पैर पूरी तरह से कट गया।अरुणिमा पूरी रात उसी रेलवे ट्रैक पर पड़ी रही और सुबह वहां से गुजर ने वाले कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें देखा और अस्पताल पहुंचाया। इसी दौरान अरुणिमा का पैर काटना पड़ गया। उस समय मीडिया और न्यूज़पेपर ने अरुणिमा की जमकर आलोचना की तथा अरुणिमा को तरह तरह की बातों का सामना करना पड़ा। कुछ लोग उन्हें लाचार बोल रहे थे, तो कुछ लोग बेचारी।
लेकिन वह कहते है ना :
सीढ़ियां उनको मुबारक , जिनको छत पर जाना है!
मेरी मंजिल तो है आसमां , मुझे रास्ता खुद बनाना है!!
अरुणिमा को जिस समय मीडिया और समाज के लोग लाचार समझ रहे थे। उस समय अरुणिमा के अंदर कुछ और ही चल रहा था। उन्होंने फैसला किया वह लोगों की मुंह बंद कर देंगी। वह लाचार ना रहकर ऐसा कुछ कर दिखाएंगी जो आज तक के इतिहास में किसी ने ना किया हो। उन्होंने इसके लिए दुनिया के सबसे कठिन स्पोर्ट्स हिल क्लाइंबिंग को चुना और एवरेस्ट पर चढ़ने का फैसला लिया।
अरुणिमा बताती हैं कि- "उस समय वह इतनी जुनूनी दौर से गुजर रही थी कि उन्होंने हॉस्पिटल से छुट्टी के बाद घर जाना ही मुनासिब नहीं समझा। वह सीधी बछेंद्री पाल ( प्रथम भारतीय महिला एवरेस्ट विजेता) के पास पहुंची और अपने विचार व्यक्त किए। बछेंद्री पाल ने उनकी जज्बे और साहस को देखते हुए उनको पूरा सहयोग दिया। अरुणिमा की 8 महीने की कड़ी तैयारी और एवेरेस्ट क्लाइम्बिंग की बारीकियों को सीखने के बाद उन्हें विश्व के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने का मौका मिला।
उन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ने से पहले करो या मरो का दृढ़ निश्चय किया और भगवान का नाम लेकर एवरेस्ट पर चढ़ाई शुरू की। उन्हें एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। सबसे बड़ी मुश्किल का सामना उन्हें तब करना पड़ा था, जब अरुणिमा को जिंदगी और मौत के बीच किसी एक को चुनना था।
दरअसल हुआ कुछ यूं कि अंत की सौ मीटर चढ़ाई के दौरान अरुणिमा का ऑक्सीजन खत्म होने की कगार पर था और इस स्थिति में बाकी एवरेस्ट क्लाइंबर ने अरुणिमा को वापस लौटने की सलाह दी। लेकिन कहते हैं ना कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ठीक वैसे ही अरुणिमा के हौसलों के आगे एवरेस्ट को भी झुकना पड़ा। Finally Arunima ने 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर एक नया इतिहास रच दिया।
वह एवेरेस्ट पर सफल चड़ाई करने वाली पहली भारतीय विकलांग महिला का वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। अब एवरेस्ट से उतरने के दौरान अरुणिमा की ऑक्सीजन पूरी तरह से खत्म हो गई और कृतिम पैर भी खराब हो गया। लेकिन वह कहते हैं ना कि जो सच्चे दिल से कोशिश करते हैं उनका भगवान भी साथ देता है। ठीक वैसा ही अरुणिमा के साथ हुआ। एक ब्रिटिश क्लाइंबर ने एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान मौसम खराब होने की वजह से दो में से एक ऑक्सीजन सिलेंडर अरुणिमा को दिया और वापस नीचे की तरफ लौट गया।
इस तरह अरुणिमा ने वापस लौटने में सफलता हासिल की और सभी को चौंकने पर मजबूर कर दिया। Arunima ने साबित कर दिया कि अगर इंसान सच्चे दिल से चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता। चाहे वह औरत हो या आदमी या फिर कोई विकलांग। अरुणिमा का कहना है कि-" इंसान शरीर से विकलांग नहीं होता बल्कि मानसिकता से विकलांग होता है"।अरुणिमा की इच्छा है की वह विश्व की सबसे ऊंची चोटियों को फतह करें। जिनमें से चार उन्होंने सफलतापूर्वक फतेह कर ली है।
Arunima Sinha के मोटिवेशनल शब्द
अभी तो इस बाज की असली उड़ान बाकी है,
अभी तो इस परिंदे का इम्तिहान बाकी है।
अभी अभी तो मैंने लांघा है समंदरों को,
अभी तो पूरा आसमान बाकी है!!!
More words :
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